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लेखनी प्रतियोगिता -12-Apr-2023 ययाति और देवयानी

भाग 89  विवाह की भागमभाग और दौड़ धूप में मनुष्य बहुत थक जाता है । एक तो लंबी यात्रा ऊपर से सगे संबंधियों से भेंट कर उनसे बधाइयां और उपहार ग्रहण करना । सारा बदन अकड़ जाता है । अधरों पर सदैव मुस्कान बनाए रखना भी कोई आसान काम नहीं है । उस पर "कंकण डोरा" की रस्म ! ययाति थकान से निढाल हो चुका था । मन से आवाज आने लगी "काश ! थोड़ा सा एकान्त मिल जाता तो तन को चैन आ जाता" ! उसकी आंखें निद्रा के कारण बोझिल होने लगी थी ।

देवयानी का हाल ययाति से भी बदतर था । तीस किलो का जोड़ा पहन कर चार कदम भी चलना उसके लिए दूभर हो रहा था । किन्तु उसने पहले कभी इतने भारी भरकम वस्त्र और आभूषण पहने नहीं थे इसलिए उन्हें पहनने का शौक उससे यह सब करवा रहा था । यद्यपि दासियां पंखा झल रही थी । इत्र , केवड़ा, गुलाब जल छिड़क रही थीं किन्तु नव वधू होने के कारण घबराहट, झिझक, लाज, संकोच , भय , अज्ञानता आदि के कारण वह फाल्गुन मास में भी पसीने पसीने हो रही थी ।

अशोक सुन्दरी समस्त स्त्रियों से उसका परिचय करवा रही थीं । देवयानी सबसे बड़े आदर और सम्मान के साथ मिल रही थी और सबके चरण स्पर्श कर उन्हें उचित सम्मान दे भी रही थी । बार बार नीचे झुकने के कारण उसकी कमर अकड़ कर अमचूर बन गई थी । देवयानी को झुकने की आदत नहीं थी इसलिए उसे झुकने में समय भी लग रहा था । किसी व्यक्ति की प्रकृति अचानक से नहीं बदलती है , उसे बदलने में थोड़ा समय लगता है । देवयानी को लचीला बनने में अभी और समय लगेगा ही ।

अशोक सुन्दरी ने ययाति को ऊंघते हुए देख लिया था । उसके चेहरे से थकान भी परिलक्षित हो रही थी । अशोक सुन्दरी को अहसास हुआ कि अब इन दोनों को विश्राम की सख्त आवश्यकता है । यदि इन्हें रस्मों में और अधिक उलझाकर रखा गया तो ये दोनों यहीं पर ढेर हो जायेंगे । उसने दो दासियों को बुलवाया और कहा "महाराज और महारानी जी को अपने अपने शयनकक्ष में लेकर जाओ और कक्ष के आगे सघन पहरा बैठा दो । कोई भी व्यक्ति महाराज और महारानी जी से नहीं मिलेगा । दोनों को पूर्ण एकान्त प्रदान किया जाये" । अशोक सुन्दरी के शब्द ययाति और देवयानी को अमृत तुल्य लगे । दोनों ने मन ही मन कहा "हे भगवान आपको बहुत बहुत धन्यवाद ! आखिर आपने हमारी पीड़ा सुन ही ली । आप धन्य हैं भगवन्" ।

ययाति और देवयानी अपने अपने शयनकक्ष में चले गये । ययाति ने अपने भारी भारी वस्त्र उतार दिये और पलंग पर लेट गया । लेटते ही वह निद्रा देवी की गोदी में समा गया । स्वप्न में वह क्या देखता है कि वह और देवयानी एक सुरम्य वन में विहार कर रहे हैं । आम्र मंजरी में लुका छिपी का खेल खेल रहे हैं । देवयानी ने अपने रेशमी दुपट्टे से ययाति की आंखें कसकर बांध दी हैं । देवयानी ने ययाति की आंखों पर पट्टी बांधकर उसे चार पांच बार घुमा दिया और खुद कहीं छुप गई ।

ययाति टटोल टटोलकर उसे ढूंढने लगा ।  "देव, तुम कहां हो" ? ययाति पूछता लेकिन देवयानी बहुत बुद्धिमान थी । "मैं यहां हूं" कहकर वह वहां से एक ओर भाग जाती और ययाति उस स्थान पर जा पहुंचता जहां से उसने "मैं यहां हूं" कहा था । लेकिन वहां पर उसे कोई नहीं मिलता तब ययाति निराश हो जाता और फिर से पुकारने लगता  "क्यों सताती हो देव , अब सामने आ भी जाओ ना" ।  कहते हुए ययाति ने अपने दोनों हाथ फैला दिये । ययाति के बाजुओं में कुछ हलचल सी हुई । ऐसा लगा जैसे कोई कोमलांगी उसकी बांहों में कसी हुई है । उसने अपनी आंखों पर बंधी पट्टी खोल डाली । एक अनजान लड़की उसकी बांहों में कसमसा रही थी । उसे देखकर ययाति चौंक गया । उसका चेहरा कुछ जाना पहचाना सा लग रहा था । ययाति को लगा कि उसने उसे कहीं देखा है । कहां देखा , यह याद नहीं आ रहा था । वह सुन्दरी ययाति की बांहों में मचल रही थी और छूटने की कोशिश कर रही थी

देवयानी एक लता कुंज के झुरमुट के पीछे छुपी हुई थी । वह इंतजार कर रही थी कि सम्राट उसके पास आकर उसे पकड़ लें । किन्तु सम्राट उधर आये ही नहीं तो बेचारी देवयानी वहां पर क्या करती ? वह लता कुंज के पीछे से बाहर निकल आई । जैसे ही उसने सामने की ओर देखा , वह मूर्तिवत हो गई । ययाति की बांहों में कोई और युवती मचल रही थी । उसे देखते ही देवयानी जोर से चीखी  "सम्राट" ! और वह वहीं ढेर हो गई तथा ययाति की पकड़ ढीली होने से वह युवती चुपके से भाग खड़ी हुई । ययाति की नींद खुल गई । उसने खुद को पसीने से तर बतर पाया ।

श्री हरि  3.9.23

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3 Comments

KALPANA SINHA

05-Sep-2023 12:18 PM

Amazing

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Varsha_Upadhyay

04-Sep-2023 09:30 PM

Nice

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Abhinav ji

04-Sep-2023 07:10 AM

Very nice

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